शांति की भूमिका लिखने को आतुर जिसने युद्ध की पटकथा लिख डाली। एक बेहतर राष्ट्र की परिकल्पना में जिसने विनाश का खाका तैयार कर दिया। जमाने से जिसे अथाह मोह भी था, और असीमित वैराग्य भी। दिल में दुविधा, अकुलाहट, व्याकुलता और परेशानी से भरी भीड़ थी, तो प्रेम का एकांत कोना भी। काल-खण्ड की परम्पराओं से हटकर चलने वाला एक विलक्षण मानव, जिसने समय को कदम-कदम पर चुनौती दी। अंततोगत्वा वो समय से टकरा कर, अपनों से चोट खा कर सदा-सदा के लिए मिट गया। ‘जिमी-कंद अर्थात दो चट्टानों के बीच फंसा वो पौधा, जिसे संकुचित जगह के कारण न तो फैलने का जगह मिल पाता है, और न ही बढ़ने का
ISBN: | 978-93-89914-38-2 |
Pages: | 363 |
Language: | Hindi |
Size: | 5.5×8.5 |
Available Types: | Paperback |
Genre: | Story |
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